Thursday, May 28, 2009

धोनी का एक अंदाज़ ये भी

हमारी क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंग धोनी आजकल विज्ञापन की शूटिंग को लेकर खूब चर्चा में है।पहले एक एड फ़िल्म की शूटिंग के चक्कर में वो पदमश्री लेना भूल गए थे और अब बंगाली बाला बिपाशा के साथ उनके एक विज्ञापन की न्यूज़ चेनल्स पर खूब चर्चा हो रही है।

अब, जब धोनी की ये शूटिंग लगभग सारे चेनल्स पर छाई हुई है तो मैंने सोचा कि धोनी की एक और शूटिंग से आप लोगो को रूबरू करवाना चाहिए। आप को शायद ये जानकर हैरानी होगी कि धोनी जितने अच्छे खिलाड़ी है वे उतने ही अच्छे शूटर भी है। पहले धोनी का ये नया अंदाज़ देखिये फ़िर इसके बारे में कुछ और बातें करेंगे...


धोनी का निशाना

आमतौर पर धोनी के हाथो में या तो विकेट कीपिंग के दस्ताने होते है या फ़िर अपना बेट मगर इंदौर में भारतीय टीम के कप्तान अपने हाथ में बन्दूक लेकर निशाना साधते हुए नज़र आए। वे अपने साथ चल रहे बी.एस.एफ.के डिप्टी कमांडेंट अंजन भोला और मध्यप्रदेश राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी सिद्धार्थ चौधरी से अलग अलग तरह की बंदूको की भी जानकारी ले रहे थे।

दरअसल पिछले साल नवम्बर में इंदौर में भारत और इंग्लेंड के बीच एक मैच था। मैच के लिए यहाँ आए धोनी को जब ये पता चला कि इंदौर में बी.एस.एफ.की एक बेहतरीन शूटिंग रेंज है तो वो अपने आप को रोक नही पाये और तुंरत रेंज में पहुच गए।

धोनी लगभग २ घंटे तक यहाँ रहे। यहाँ उन्होंने इनडोर और आउटडोर दोनों रेंज में निशाने साधे। धोनी ने खासतौर पर उस तरह की गन से निशानेबाजी की जिससे अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण पर निशाना लगाया था. उनके सटीक निशानों और सादगी भरे व्यवहार से बी.एस.एफ के अधिकारी भी हैरान थे। उनके मुताबिक धोनी एक अच्छे खिलाड़ी ही नही बल्कि एक उम्दा इंसान और बेहतर निशानेबाज़ भी है।





मुझे नही पता कि आप क्रिकेट देखना पसंद करते है या नही ? मुझे ये भी नही पता कि आप धोनी के फेन है या कई सारी बातो को लेकर उनके आलोचक है लेकिन यदि आप धोनी के करीयर से वाकिफ है तो आप इस बात से सहमत होंगे कि इस बन्दे में ऐसा कुछ तो है जो उन्हें बाकि लोगो और खिलाडियों से अलग बनाता है और यदि आप इससे इत्तिफाक नही रखते तो आपका स्वागत है अपनी बात रखने के लिए

Saturday, May 23, 2009

ज़िंदगी की जंग

गाँव वालो ने जिताई ज़िंदगी की जंग




अपनी अपनी जान सबको प्यारी होती है चाहे वो इंसान हो या जानवर। कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश के देवास जिले के एक गाँव में जंगल से गुज़रते हुए ये महाशय एक बड़े कुए में जा गिरे। जंगल के राजकुमार की किस्मत अच्छी थी ये सीधे पानी में नही पहुचे। कुए में गिरने के बाद इन्होने वहा भी अपने लिए एक ठिया तलाश लिया - चुनाव हारने वाले उन नेताओ की तरह, जो संगठन में अपना ठिया कबाड़ लेते है।
इस ठिये पर बैठकर सरकार काफी देर तक गुर्राते रहे तब जाकर पास के खेत पर काम कर रहे लोगो को इनकी ख़बर लगी। फ़िर तो देखते ही देखते लोगो की भीड़ इकट्ठा हो गई। हमेशा डराने वाले इस तेंदुए को मुसीबत में देखकर पहले तो गाँव के लोग खूब खुश हुए मगर बाद में इन्हे मौत के कुए से निकालने की जुगाड़ बिठाने लगे।
वन विभाग वालो को भी बुलाया गया मगर उनको भी ये समझ में नही आ रहा था की आख़िर इन महाशय को यहाँ से निकाले कैसे ? तभी बारिश भी शुरू हो गई .......

आखिरकार जुगाड़ जमाने में माहिर ग्रामीण प्रतिभाओं ने इसका हल भी निकाल ही लिया। आप भी देखिये कि किस चतुराई से उन्होंने इस छोटे तेंदुए को मौत के कुए से निकालकर वन विभाग के हवाले किया

चुनाव में मीडिया की भूमिका का पोस्टमार्टम.

राज्यसभा के चुनाव में उन्हें वोट देने के लिए मैंने पैसे नही मांगे थे ,मगर मेरी ख़बर छापने के लिए वो पैसे मांग रहे है।चुनाव के दौरान यु.पी. के एक अख़बार मालिक के बारे में ये बात लखनऊ से भाजपा के प्रत्याशी लालजी टंडन ने बकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस में कही थी।इसे अपने संबोधन में दोहराते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभाष जोशी ने इस चुनाव में मीडिया के कारोबारी स्वरुप और उसकी कारगुजारियों का कच्चा चिठ्ठा पेश किया।दूसरी तरफ़ देश के एक और वरिष्ठ पत्रकार श्री बी.जी.वर्गीज़ ने भी मीडिया के इस अतिरेक पूर्ण आचरण की तीखी निंदा की।इस अवसर पर इंदौर के टीवी पत्रकार सुबोध खंडेलवाल द्वारा "चुनाव में मीडिया की बदलती भूमिका"पर लिखी गयी एक रिपोर्ट का विमोचन भी किया गया.

मौक़ा था १५ मई २००९ यानी चुनाव के नतीजे आने के एक दिन पहले इंदौर में हुई एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का. संगोष्ठी को सबसे पहले प्रभाष जी ने संबोधित किया।  प्रभाष जी ने लगभग ४० मिनिट के उद्बोधन में मीडिया की धंधेबाजी की खूब ख़बर ली. मीडिया के दागी चेहरे को बेनकाब करते हुए उन्होंने कहा कि इस बार देश के पाठको ने अखबारों में चुनाव से सम्बंधित जो भी खबरे पढी उनमे से ज़्यादातर किसी न किसी उम्मीद्वार के पैसे के प्रभाव में छापी गई थी, और यदि किसी के खिलाफ ख़बर छपी तो वो इसलिए छपी क्योकि उसने विज्ञापन को खबरों के रुप में छापने का पेकेज नही लिया था.

इसके पहले सुबोध खंडेलवाल ने चुनाव में मीडिया की बदलती भुमिका पर आधारित रिपोर्ट के बारे में जानकारी प्रस्तुत की. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में कुछ अपवादो को छोडकर देश का मीडिया सिक्के से चलाने वाले पब्लिक फोन की तरह नजर आया, जिसमे सिक्का डालने  वाले व्यक्ति की आवाज़ ही सामने वाले व्यक्ति छोर तक पहुचती है. यदि किसी ने इसमें सिक्का नही डाला है तो तो फिर चाहे उसकी आवाज़ कितनी भी बुलंद हो वो दब जाती है.

प्रभाष जी के भाषण के वीडियो की पहली कड़ी यहाँ है -



 
प्रभाष जी के भाषण की दूसरी और तीसरी कड़ी नीचे लिखी पंक्तियों पर क्लिक कर देखी और सुनी जा सकती है.
पिंक पत्रकारिता पीत पत्रकारिता से भी ज़्यादा खतरनाक है

पहले पेज पर छापो की हम झूठी खबरे देते है

पिंक पत्रकारिता पीत पत्रकारिता से भी ज़्यादा खतरनाक है

प्रभाष जी ने कहा कि गुलाबी पन्नो पर निकालने वाले अंग्रजी के अखबार इकोनोमिक टाइम्स में पैसे लेकर खबरे छापने का काम सन २००६ से चल रहा है। टाइम्स समूह ने इसके लिए मीडिया इनीशिएटिव नामक एक एक कंपनी बनाई थी। बाद में एच टी ने भी एसा ही किया। इन अखबारों ने इस चुनाव में चुनावी खबरों के कवरेज के लिए वसूलने वाली राशि के रेट कार्ड्स भी छपवाए थे।

Friday, May 22, 2009

पहले पेज पर छापो की हम झूठी खबरे देते है

चुनाव के दौरान दिल्ली के एक पड़ोसी राज्य के मुख्यमंत्री ने एक अखबार मालिक को फोन पर कहा की आप अपने अखबार के पहले पेज पर मेरी तरफ़ से पुरे पेज का विज्ञापन छापो कि ये अखबार झूठा है और पैसे लेकर ख़बर छापता है।- प्रभाष जी

विश्वास का रिश्ता ना तोडा जाए

अखबार और पाठक के बीच विश्वास का रिश्ता होता है। यदि इस विश्वास को आप तोड़ रहे हो तो आप अपनी जिम्मेदारी नही निभा रहे हो.